सत्ता से बाहर बीते आठ वर्षों में कांग्रेस की युवा इकाइयों—जैसे एनएसयूआई और युवा कांग्रेस—की सक्रियता और ऊर्जा में भारी गिरावट आई है। जो संगठन कभी पार्टी के नेताओं की नर्सरी माने जाते थे, वे अब कमजोर और निष्क्रिय नजर आते हैं। पहले जैसा जोश और उत्साह अब इनमें नहीं दिखता।
प्रदेश की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही कांग्रेस इस समय गंभीर अंदरूनी संकट से जूझ रही है। पार्टी के दिग्गज नेता अपनी कमजोर होती पकड़ को संभाल नहीं पा रहे, वहीं दूसरी पंक्ति के नेता भी मजबूती से उभर नहीं पा रहे हैं। इस दोहरी चुनौती के साथ कांग्रेस को 2027 के विधानसभा चुनाव का सामना करना है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मजबूत छाया में नए चेहरे उभरने का मौका नहीं पा रहे हैं। वहीं सत्ता से लंबे समय से बाहर रहने की वजह से दूसरी कतार के नेताओं में जिम्मेदारी लेने का उत्साह भी नजर नहीं आ रहा है। विधानसभा, लोकसभा और निकाय चुनावों में लगातार हार के बाद कांग्रेस में वापसी की बेचैनी तो दिख रही है, लेकिन दूसरी पंक्ति अब भी निष्क्रिय बनी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर उन्हीं पुराने चेहरों पर दांव लगाएगी, जिनके पास राजनीतिक अनुभव तो है, लेकिन नया प्रभाव छोड़ने की क्षमता कम होती जा रही है। बीते आठ वर्षों से सत्ता से दूर रही कांग्रेस प्रदेश में कोई प्रभावशाली और जनप्रिय युवा चेहरा तैयार नहीं कर पाई है। जो कुछ नए चेहरे पार्टी मंच पर नजर आए भी, वे ज्यादातर परिवारवाद की पारंपरिक राजनीति से जुड़े हुए हैं, जिससे संगठन में नई ऊर्जा का संचार नहीं हो सका।
जोश, उत्साह और सक्रियता नहीं दिखती
विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस में कुछ चेहरों ने संगठन के सहयोगी मंचों के जरिये परिवारवाद की दीवार तोड़कर अपनी पहचान बनाने की कोशिश जरूर की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। बीते आठ वर्षों की सत्ता से दूरी ने एनएसयूआई और युवा कांग्रेस जैसे संगठन, जो कभी कांग्रेस के लिए नेता गढ़ने की नर्सरी माने जाते थे, कमजोर और निष्क्रिय बना दिए हैं। इन मंचों में अब वह जोश और सक्रियता नहीं दिखती जो कभी इनकी पहचान हुआ करती थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब तक कांग्रेस अपनी सांगठनिक मजबूती को फिर से नहीं हासिल करती, तब तक चुनावी मैदान में उसके हिस्से संघर्ष ही आता रहेगा।
कांग्रेस में नेताओं की कमी नहीं है। यह एक ऐसी पार्टी है जहां बड़े नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सभी को एक समान महत्व दिया जाता है। भाजपा सरकार भी कांग्रेस में रहे नेताओं के सहारे चल रही है। भाजपा डरा धमका कर कांग्रेस नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल करती है। लेकिन कांग्रेस में एक से बढ़ कर एक नेता हैं। -सूर्यकांत धस्माना, प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष संगठन