बिनसर अभयारण्य में वनाग्नि की घटना के बाद प्रशासन और अधिकारियों द्वारा प्रभावितों के साथ खड़े रहने और घायलों के बेहतर उपचार के दावों के बावजूद, पीआरडी जवान कुंदन की जान नहीं बचाई जा सकी। यह घटना न केवल प्रभावितों के लिए दुखद है बल्कि यह भी दिखाती है कि राहत और उपचार की व्यवस्था में कहीं न कहीं कमी रह गई। इस प्रकार की घटनाओं से सबक लेकर भविष्य में और भी बेहतर तैयारी और त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि ऐसे हादसों में जानमाल का नुकसान कम से कम हो सके।
बिनसर अभयारण्य में वनाग्नि की भीषण घटना के बाद, शासन से लेकर जिला स्तर पर अधिकारी और जनप्रतिनिधि सभी ने प्रभावितों के साथ खड़े रहने की बात की। दिल्ली एम्स में घायलों के बेहतर उपचार के दावे भी किए गए। इसके बावजूद, पीआरडी जवान कुंदन की जान नहीं बचाई जा सकी। चिकित्सक उसकी जान बचाने के लिए दिन-रात मेहनत करते रहे, लेकिन 18 दिनों के संघर्ष के बाद वह जीवन की जंग हार गया। उसकी मौत से उसके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है और एक के बाद एक घायल वन कर्मियों की मौत से सिस्टम पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह घटना प्रशासन और राहत व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करती है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
बिनसर अभयारण्य में 13 जून को भीषण आग लग गई और वन बीट अधिकारी सहित आठ वन कर्मियों को बगैर संसाधनों के मौके पर भेज दिया गया। सभी वन कर्मी अपनी जिम्मेदारी निभाने मौके पर पहुंचे लेकिन चार वन कर्मी भीषण आग में जिंदा जलकर काल के गाल में समा गए। गंभीर रूप से झुलसे चार वन कर्मियों को उपचार के लिए दिल्ली एम्स पहुंचाया गया। घटना के बाद अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मृतकों के साथ ही घायलों के घर पहुंचकर परिजनों को साथ होने का हौसला दिया। घायलों के बेहतर उपचार के दावे किए गए लेकिन चिकित्सकों की भरपूर कोशिशों के बाद भी फायर वॉचर और पीआरडी जवान की जान नहीं बचाई जा सकी।
पीआरडी जवान कुंदन अपनी पत्नी गंगा(37), बेटे सुमित(13), प्रियांशु(15) और बेटी प्रीति(13) के साथ हंसी-खुशी दिन बिता रहा था। फायर सीजन में उसकी ड्यूटी जंगलों की सुरक्षा के लिए वन विभाग में लगाई गई थी। हैरानी है कि संसाधनों के अभाव में वनाग्नि ने उसका जीवन छीन लिया। उसकी मौत से हंसते-खेलते एक परिवार की खुशियों पर हमेशा के लिए ग्रहण लग गया। कुंदन, उसके साथी वन कर्मियों की मौत और घायलों के साथ ही प्रभावित परिवारों की इस हालत का जिम्मेदार वनाग्नि रही या सिस्टम लोगों के मन में यह सवाल बार-बार उठ रहा है।
घर लौटने का इंतजार कर रहे थे पत्नी, बेटा और बेटी
ग्रामीणों ने बताया कि कुंदन अप्रैल में कुछ दिनों के लिए घर आया था और उस दौरान उसने अपनी पत्नी, बेटे और बेटी से मुलाकात की थी। फायर सीजन में जंगलों में आग लगने के कारण छुट्टियाँ रद्द हो गईं, तो वह फिर से ड्यूटी पर बिनसर लौट गया। कुंदन और उसके परिवार को यह नहीं पता था कि यह उनकी आखिरी मुलाकात होगी और वह फिर कभी अपने परिवार का चेहरा नहीं देख सकेगा। उसके परिवार वाले फायर सीजन खत्म होने का इंतजार कर रहे थे ताकि वह घर लौट सके, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उसके कार्यस्थल पर एक भयानक घटना उसका इंतजार कर रही थी
मानदेय का इंतजार करते सो गया गहरी नींद
पीआरडी जवानों को नए वित्तीय वर्ष से अब तक मानदेय नहीं मिला है, जिसमें कुंदन भी शामिल था। तीन महीने से मानदेय नहीं मिलने के कारण उसकी पत्नी उधारी में घर चलाकर तीन बच्चों का पालन कर रही थी। कुंदन भी मानदेय मिलने का इंतजार करते हुए अपनी जिम्मेदारियाँ निभा रहा था। उसे मानदेय तो नहीं मिला, लेकिन इसका इंतजार करते हुए वह हमेशा के लिए सो गया।
गंगा को देर शाम मिली पति की मौत की खबर
दिल्ली के एम्स में रविवार सुबह कुंदन की मौत हो गई थी। उसकी मौत की खबर वन विभाग और ग्रामीणों को मिली, लेकिन कोई भी उसकी पत्नी और बच्चों को यह बात बताने की हिम्मत नहीं जुटा सका। पति की कुशलता की उम्मीद में पत्नी गंगा पूरे दिन खुद को हौसला देते हुए काम में जुटी रही। देर शाम जब उसे पति की मौत की खबर मिली, तो वह बदहवास हो गई। पिता की मौत से बेटे और बेटी का भी रो-रोकर बुरा हाल है।
जंगल की आग में जलकर 11 लोगों की हो चुकी है मौत
इस फायर सीजन में जिले में वनाग्नि ने जमकर कहर बरपाया। अब तक जिले में जंगल में जलने से चार नेपाली मजदूरों और छह वन कर्मियों सहित 11 लोगों की मौत हो चुकी है। इस फायर सीजन में जिले में 159 घटनाओं में 287 हेक्टेयर जंगल जल चुका है। हैरानी की बात है कि पूरे फायर सीजन में जंगलों के साथ ही वन कर्मियों की सुरक्षा के लिए कोई उपकरण और जरूरी संसाधन नहीं मिले। जब फायर सीजन अंतिम चरण में था, तब वन विभाग को जरूरी संसाधन जुटाने के लिए 26 लाख रुपये का बजट मिला है।
सिस्टम पर उठे सवाल तो टूटी जनप्रतिनिधियों की नींद
फायर सीजन में सोमेश्वर के स्यूनराकोट में तीन मई को लीसा दोहन में लगे दो दंपति की जिंदा जलकर मौत हो गई थी। इस घटना के 13 दिन बाद 16 मई को यहीं के खाईकट्टा में जंगल की आग बुझाने गया युवक जिंदा जल गया था। 13 जून को बिनसर अभयारण्य में जंगल की आग में जलने से चार वन कर्मियों की मौके पर ही मौत हो गई थी और चार गंभीर रूप से घायल हो गए थे। हैरानी की बात है कि इतनी बड़ी घटनाओं के बाद भी कोई भी जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचे। जब सिस्टम पर सवाल उठे तो बिनसर की घटना के पांच दिन बाद कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या प्रभावितों का दर्द बांटने पहुंची। वहीं, शनिवार को केंद्रीय सड़क एवं परिवहन राज्य मंत्री अजय टम्टा ने प्रभावितों के घर पहुंचकर उनके साथ खड़ा रहने का वादा किया है। दोनों जनप्रतिनिधियों के अलावा अब तक कोई भी प्रभावित परिवारों से मिलने की जहमत नहीं उठा सका।