ओएनजीसी चौक पर हुए हादसे में छह दोस्तों की जान चली गई, लेकिन सिद्धेश के लिए एक निजी अस्पताल का फार्मासिस्ट फरिश्ता बनकर आया।
क्षतिग्रस्त कार में सिसकते हुए सिद्धेश के लिए एक निजी अस्पताल का फार्मासिस्ट फरिश्ते जैसा साबित हुआ। वह रास्ते से गुजर रहा था, जब उसने हादसा देखा और सबसे पहले सिद्धेश को बाहर निकाला, क्योंकि उसने उसकी सांसें चलती देखी थीं। फार्मासिस्ट ने इस बारे में अपने परिचित को बताया, और वह भी सिद्धेश का परिचित निकला। कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंची और सिद्धेश को सिनर्जी अस्पताल में भर्ती कराया।
हादसा लगभग पौने दो बजे हुआ था। अभी हादसे को चंद मिनट ही हुआ था कि वहां से दीपक पांडेय नाम का युवक अपने काम से अस्पताल जा रहा था। उसने बिना कोई देर किए कार की तरफ दौड़ लगा दी। चारों ओर लाश और मांस के लोथड़े पड़े हुए थे। दीपक ने देखा कि अभी पिछली सीट के नीचे फंसे एक युवक की सांसें चल रही हैं।
वह सिसक रहा था, लेकिन कराहने की कोई आवाज नहीं निकल रही थी। दीपक ने अपनी मेहनत से उसे बाहर खींचने की कोशिश की, लेकिन जब वह बाहर नहीं आ सका, तो उन्होंने चादर को हाथ से मोड़ना शुरू कर दिया। इस दौरान उनका हाथ भी घायल हो गया।
खतरे से बाहर सिद्धेश
दीपक ने इस घटना की सूचना सेवानिवृत्त क्षेत्राधिकारी अनिल शर्मा को दी, जो सिद्धेश के परिवार को जानते थे। शर्मा बिना वक्त गवाए मौके पर पहुंच गए। तब तक पुलिस भी घटनास्थल पर आ चुकी थी। सबसे पहले सिद्धेश को सिनर्जी अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल के एमडी कमल गर्ग ने बताया कि फिलहाल सिद्धेश की हालत खतरे से बाहर है, हालांकि उसके हाथ और सिर में चोटें आई हैं। डॉक्टरों की एक टीम उसकी स्थिति पर निगाह रखे हुए है।
सिद्धेश ही बता सकता है असल कहानी
सभी दोस्त सबसे पहले कहां मिले थे। कहां वे सब जा रहे थे। जाखन से निकले तो कौलागढ़ की तरफ क्या करने गए थे? इन सब सवालों के जवाब हर कोई खोज रहा है। लेकिन, इनका जवाब केवल सिद्धेश को ही पता है। वही जानता है कि उन्होंने सोमवार की रात क्या किया और किस कारण से वे सब कौलागढ़ की तरफ जा रहे थे। जबकि, इस रास्ते पर किसी भी दोस्त का घर नहीं है।