इको सेंसिटिव जोन की पर्यावरणीय क्षमता को समझने के लिए अध्ययन किया जा रहा है। एफआरआई के वैज्ञानिक पंजाब के दो वन्यजीव अभयारण्यों का अध्ययन कर रहे हैं और जल्द ही इस पर रिपोर्ट देंगे।
दो वन्यजीव अभयारण्यों में इंसानी दखल से जंगल और जैव विविधता पर क्या असर हो रहा है, इसका अध्ययन वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) कर रहा है। साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि जैव विविधता बचाने के लिए बनाए गए नियमों का आसपास की आबादी पर क्या असर पड़ रहा है।
अध्ययन पूरा होने के बाद एफआरआई पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और जरूरी कदमों की सिफारिश भी करेगा।
एफआरआई वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पर्यावरण वहन क्षमता का पहला अध्ययन है जो सीधे प्राथमिक स्रोतों पर आधारित है।
पंजाब के होशियारपुर में तखनी-रहमापुर और पटियाला में बीर भादसों नामक दो वन्यजीव अभयारण्य हैं। इन अभयारण्यों के चारों ओर 100 मीटर तक के क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया गया है। अब पंजाब वन विभाग ने इन क्षेत्रों की पर्यावरणीय वहन क्षमता का अध्ययन करवाने का निर्णय लिया है।
जंगल की मिट्टी, पानी, हवा आदि की गुणवत्ता को देखा जाएगा
करीब दो साल पहले एफआरआई के वन पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग को यह जिम्मा दिया गया।
अध्ययन में इको सेंसिटिव जोन में रहने वाली आबादी की जंगल पर निर्भरता और उससे होने वाले प्रभावों को भी शामिल किया गया।
इसके साथ ही जंगल की जमीन, पानी की स्थिति और पर्यावरण की संवेदनशीलता का भी जायजा लिया गया।
पांच श्रेणियों में अध्ययन किया जा रहा
अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक डॉ. विष्णु प्रसाद साहू व सीनियर रिसर्च फेलो राहुल यादव कहते हैं कि भूमि संसाधन, जल संसाधन, परिस्थितिकी संवेदनशीलता, पर्यावरण संसाधन और सामाजिक आर्थिक वहन क्षमता की पांच श्रेणियों में अध्ययन किया जा रहा है। इसके साथ ही इको सेंसेटिव जोन की स्थिति कैसी है, इसकी अध्ययन रिपोर्ट होने से भविष्य में कोई भी कदम उठाने में मदद मिलेगी। अध्ययन का काम अंतिम चरण में है, इसके बाद रिपोर्ट पंजाब वन विभाग को सौंप दी जाएगी। एफआरआई निदेशक डॉ. रेनू सिंह कहती हैं कि पर्यावरण वहन क्षमता का यह पहला एवं नवीन दृष्टिकोण से अध्ययन किया जा रहा है।
वन प्रबंधन को और बेहतर करने में मदद मिले
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अध्ययन से जंगलों के बेहतर प्रबंधन में मदद मिलेगी और जहां कमियां हैं, वहां सुधार किया जा सकेगा।
भविष्य में उत्तराखंड जैसे राज्यों, जहां कई टाइगर रिजर्व और वन्यजीव अभयारण्य हैं, वहां भी ऐसी स्टडी कर हालात को समझने की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकेंगे।
