सशक्त भू-कानून की मांग को देखते धामी सरकार करीब तीन साल से काम कर रही थी। वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने पांच सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।
उत्तराखंड विधानसभा ने आज सशक्त भू-कानून से जुड़े विधेयक को मंजूरी दे दी। माना जा रहा है कि इस नए कानून से बाहरी लोगों द्वारा जमीन की अंधाधुंध खरीद पर रोक लगेगी। पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि प्रबंधन बेहतर होगा, जिससे राज्य के निवासियों को फायदा मिलेगा। यह कानून भूमि की कीमतों में अनावश्यक बढ़ोतरी को रोकने में मदद करेगा और स्थानीय लोगों को जमीन खरीदने में आसानी होगी। साथ ही, सरकार को भूमि खरीद-बिक्री पर अधिक नियंत्रण मिलेगा, जिससे अनियमितताओं पर रोक लगाई जा सकेगी।
धामी सरकार करीब तीन साल से कर रही थी काम
सशक्त भू-कानून की जरूरत को देखते हुए धामी सरकार पिछले तीन साल से इस पर काम कर रही थी। वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति बनाई, जिसने 5 सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इस समिति ने भू-कानून को मजबूत बनाने के लिए 23 सिफारिशें पेश की थीं। सरकार ने इन सिफारिशों और रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति भी गठित की थी। इससे पहले, कृषि और बागवानी के लिए भूमि खरीद से पहले खरीदार और विक्रेता के सत्यापन के निर्देश दिए गए थे।
ये हैं नए प्रावधान
इसमें 2018 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के 12.50 एकड़ से अधिक भूमि खरीद के प्रावधान को भी समाप्त कर दिया।
इस कानून के लागू होने के बाद राज्य से बाहर के लोग हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिले को छोड़ बाकी 11 जिलों में कृषि और बागवानी की भूमि नहीं खरीद पाएंगे।
भूमि खरीद की अनुमति में जिलाधिकारी के अधिकार को सीमित कर दिया है। अब जिलाधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से भूमि खरीद की अनुमति देने का अधिकार नहीं होगा। भूमि खरीद की अनुमति अब शासन ही देगा।
सभी मामलों में सरकार के बनाए गए पोर्टल के माध्यम से प्रक्रिया पूरी करनी होगी।
राज्य के बाहर के लोगों को घर बनाने के लिए निकाय क्षेत्रों से बाहर 250 वर्ग मीटर जमीन खरीदने की अनुमति होगी, लेकिन एक परिवार का एक सदस्य जीवन में एक बार ही भूमि खरीद सकेगा।
भूमि खरीद के समय यह शपथपत्र देना अनिवार्य होगा कि उसके या उसके परिवार के किसी भी सदस्य ने भूमि नहीं खरीदी है। नगर निकाय सीमा के अंतर्गत आने वाली भूमि का उपयोग केवल निर्धारित भू उपयोग के अनुसार ही किया जा सकेगा। यदि किसी व्यक्ति ने नियमों के खिलाफ जमीन का उपयोग किया तो वह जमीन सरकार में निहित हो जाएगी।
विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है कि सभी जिलाधिकारियों को राजस्व परिषद और शासन को नियमित रूप से भूमि खरीद से जुड़ी रिपोर्ट सौंपनी होगी।
कृषि भूमि का भू-उपयोग परिवर्तन तभी संभव होगा, जबकि सरकार इसकी अनुमति देगी।
कृषि भूमि पर प्लॉटिंग करने वालों पर हो सकेगी कड़ी कार्रवाई।
23 साल में कई बदलावों से गुजरता रहा उत्तराखंड का भू-कानून
उत्तराखंड में भू-कानून राज्य बनने के दो साल बाद बना, लेकिन पिछले 23 सालों में इसमें कई बार बदलाव किए गए। 2002 में एन.डी. तिवारी सरकार ने यह कानून बनाया, जिसे 2004 में सख्त किया गया। 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने इसमें सबसे ज्यादा रियायतें दीं।
राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश का पुराना कानून लागू था, जिसमें जमीन खरीद पर कोई प्रतिबंध नहीं था। 2003 में तिवारी सरकार ने यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 में संशोधन कर बाहरी लोगों के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर भूमि खरीद पर रोक लगाई। साथ ही, कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगाया गया, जहां 12.5 एकड़ तक जमीन खरीदने की अनुमति जिलाधिकारी को दी गई। चिकित्सा, स्वास्थ्य और औद्योगिक उपयोग के लिए जमीन खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया। तिवारी सरकार ने यह भी नियम बनाया कि जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा करना होगा, अन्यथा समय बढ़ाने के लिए कारण बताना पड़ेगा।
2007 में जब औद्योगिक पैकेज के कारण भूमि का दुरुपयोग बढ़ा, तो बी.सी. खंडूड़ी सरकार ने कानून को और सख्त करते हुए आवासीय भूमि खरीद की सीमा 500 से घटाकर 250 वर्गमीटर कर दी। 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने फिर से संशोधन कर पहाड़ों में उद्योगों के लिए जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा और किसान होने की बाध्यता खत्म कर दी। साथ ही, कृषि भूमि का उपयोग बदलना आसान कर दिया और इस नियम को मैदानी क्षेत्रों तक भी लागू कर दिया।
