कांग्रेस के दो दिग्गजों, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व पूर्व मंत्री डा. हरक सिंह रावत के रिश्तों की तल्खी आजकल रोज नए रूप में सामने आ रही है। ये दोनों ही नेता हरिद्वार सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं।
हरीश रावत हरिद्वार से सांसद रह चुके हैं, जबकि हरक पहले पौड़ी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। हरक ने अपनी दावेदारी को लेकर पैंतरा चला और बोले कि जिस तरह भगवान राम ने अपने भाई भरत के लिए राजगद्दी छोड़ दी थी, उसी तरह उनके लिए भी हरीश रावत को गद्दी छोड़ देनी चाहिए।
अब हरीश रावत कहां पलटवार से चूकने वाले। तुरंत जवाब आया कि भरत ने तो कभी भी राम की सरकार गिराने का काम नहीं किया। आप समझ ही गए होंगे, मार्च 2016 में हरक समेत नौ विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामकर हरीश रावत सरकार को गहरे संकट में धकेल दिया था।
छह साल बाद फिर चर्चा में लोकायुक्त:
राज्य के तीसरे और चौथे विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा लोकायुक्त छह साल बाद फिर उछल आया है। नैनीताल हाईकोर्ट के आठ सप्ताह में लोकायुक्त की नियुक्ति के आदेश के बाद राजनीतिक गलियारों में इसकी चर्चा शुरू हो गई है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने लोकायुक्त की नियुक्ति की पहल की थी, लेकिन भाजपा के चुनाव में पराजित हो जाने के कारण यह अंजाम तक नहीं पहुंच पाई। इसके बाद विजय बहुगुणा व हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्वकाल में संबंधित विधेयक में संशोधन तो हुए, लेकिन अमल नहीं हो पाया। वर्ष 2017 में भाजपा ने तीन-चौथाई से अधिक बहुमत के साथ सरकार बनाई तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पहले ही सत्र में लोकायुक्त विधेयक लेकर आ गए। यद्यपि, उस समय विधेयक प्रवर समिति को सौंप दिया गया और तब से वहीं है। अब विधानसभा इस विधेयक को लेकर सक्रिय हो गई है।
राजनीतिक पुनर्वास को कतार में कई नेता:
चर्चा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के साथ ही भाजपा संगठन में भी बदलाव होने जा रहा है। लोकसभा चुनाव को एक वर्ष से भी कम समय है, लिहाजा भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। टीम मोदी में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व अजय भट्ट कर रहे हैं। वैसे भी, जिन राज्यों में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव हैं, उन्हें ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में अवसर मिलने की इस बार अधिक संभावना है। अलबत्ता, केंद्रीय संगठन में जरूर उत्तराखंड के कुछ वरिष्ठ नेताओं को जगह मिल सकती है। भाजपा के पास कई पूर्व मुख्यमंत्री हैं, इनमें से दो रमेश पोखरियाल निशंक व तीरथ सिंह रावत सांसद हैं। एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा हैं, जिन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद पिछले लगभग सवा दो साल से राजनीतिक पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं। हो सकता है इन्हें भाजपा संगठन में इस बार स्थान मिल जाए।
उलझन में कांग्रेस, इधर जाए या उधर:
उत्तराखंड इस समय पूरे देश में चर्चा में है, समान नागरिक संहिता को लेकर। इसका प्रारूप बनाने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति काम पूरा कर चुकी है और जल्द ही इसे प्रदेश सरकार को सौंप दिया जाएगा। इस विषय ने कांग्रेस को गहरी पसोपेश में डाल दिया है। वैसे तो यह स्थिति कांग्रेस के समक्ष राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी है, लेकिन उत्तराखंड की धामी सरकार की इस पहल पर तो उसके लिए नौबत आगे कुआं, पीछे खाई वाली हो गई है। कांग्रेस न तो खुलकर इसका समर्थन कर पा रही है और न विरोध। दरअसल, पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मुद्दा कांग्रेस पर इस कदर चिपक गया था कि उसे लगातार दूसरे चुनाव में भाजपा के हाथों करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। लोकसभा चुनाव सामने हैं और अब समान नागरिक संहिता पर लिया गया स्टैंड बैक फायर कर गया तो, यही कांग्रेस की चिंता का सबब है।