जी 20 सम्मेलन के लिए रामनगर में उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति से सजी दीवारों पर बना पहाड़ का प्रसिद्ध छोलिया नृत्य हो, या उत्तराखण्ड के सुदूरवर्ती गांवो में बने मकानों से झांकती महिलाएं हो, घर के बाहर हुक्का गुड़गुड़ाते बुजुर्ग हो या फिर झोड़ा नृत्य करती महिलाएं हो ये सभी कलाकृतियां मनमोहक व मंत्रमुग्ध करने वाली है।
उधर से आते जाते इन कलाकृतियों को देखकर आंखे ठहर सी जा रही है,
परंतु मन में एक सवाल उठ रहा है की क्या यह कलाकृतियां सम्मेलन समाप्ति के बाद भी ऐसी स्थिति में रह पाएगी या नहीं?
इसलिए उत्तराखंड की जनता के साथ साथ वहां आने जाने वाले सभी अतिथियों से भी आग्रह है की सम्मेलन के बाद भी इन कलाकृतियों को खराब ना करें और ना खराब होने दें और इनके ऊपर कोई पोस्टर बैनर आदि ना लगाए और ना लगाने दें।
हमारी संस्कृति – हमारी धरोहर
उमेश बेनीवाल
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